Saturday, September 25, 2010

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१. जलने दो, धुएं सा खो जाने दो;रोने दो, सागर सा बह जाने दो
  भुला दो चाहे, बन रंजिश, युही कभी याद तो आने दो
  मोहब्बत न कर, नफरत को भी पी लूँगा
  इकरार भले न कर, इनकार से ही जी लूँगा
  फूल मुरझाये तो क्या, कंटीली राहो में भी  चलकर तुमसे मिलूँगा !


.ज़ख्म बहुत है, और दर्द भी कुछ कम नहीं
  ख़ुशी न मिली,तेरे खातिर आंसु भी पी लू, कोई  गम नहीं
  नज़रो की नजाकत को कागज़ पर चाहा उतारना, पर लफ्ज़ न मिली
  यह दिल शायर बनना चाहा, तो साली ज़िन्दगी ने कलम ही चीन ली !

3 comments:

raghuvir jha said...

kya baat hai bhaskarji , aise hi ham nahi aapke fan hain. i do not have word for praise. i am speechless.

raghuvir

ANKUR PSYCHIA said...

man.....when did u start all dis??
I never knew such a bhaskar b4....
awesome man....damn...dat too in hindi

Tezaswita said...

just one word- "perfect!"

u r a true 'shaayar', dude :)